SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 489
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रु० २ व०२अ० १ ४६१ ज्ञाता०-सूची ढाई ण - चमरचंचा राजधानी के कालावंतसक भवन में उपपात. महाविदेह से शिवपद की प्राप्ति । पल्य की स्थिति. च्यवन उपसंहार द्वितीय राजी अध्ययन १४६ क- उत्थानिका ख- राजगृह. गुणशील चैत्य भ० महावीर का समवसरण प्रवचन ग- चमर अग्र महिषी राजी देवी का आगमन, वंदन, नृत्य दर्शन गमन घ- भ० गौतम द्वारा पूर्वभव पृच्छा. आमलकप्पा नगरी. अंबशाल वन चैत्य. जितशत्रु राजा ङ - राजी गाथापति, राजश्री भार्या. राजी पुत्री च - भ० पार्श्वनाथ का समवसरण राजी की प्रव्रज्या - यावत्- शिव-पद की प्राप्ति । उपसंहार तृतीय रजनी अध्ययन छ- उत्थानिका शेष पूर्व अध्ययन के समान ज - उत्थानिका झ - उत्थानिका - शेष पूर्व अध्ययन के समान । उपसंहार द्वितीय बलेन्द्र अग्रमहिषी वर्ग १५० क उत्थानिका चतुर्थ विद्युत अध्ययन - शेष पूर्व अध्ययन के समान पंचम मेघा अध्ययन प्रथम शुंभा अध्ययन ख- उत्थानिका— राजगृह गुणशील चैत्य भ० महावीर का समव-सरण प्रवचन बलेन्द्र अग्रमहिषी शुंभादेवी का वंदन नृत्य दर्शन गमन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy