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________________ “१४७ ज्ञाता०-सूची ४६० श्रु०२ अ०१ ख- पुण्डरीक को पित्तज्वर, सफल अन्तिम-आराधना, मृत्यु, स्वार्थ सिद्ध में उपपात, च्यवन, महाविदेह में जन्म और निर्वाण निग्रंथ निग्रंथियों को भ० महावीर की शिक्षा. उपसंहार । प्रथम श्रुतस्कंध का उपसंहार द्वितीय धर्मकथा श्रुतस्कन्ध १४८ क- श्रुतस्कन्ध उत्थानिका-दस वर्गों के नाम प्रथम चमरेन्द्र अग्रमहिषी वग प्रथम काली अध्ययन ख- उत्थानिका ग- राजगृह, गुणशील चैत्य. श्रेणिक राजा. चेलणा रानी घ- भ० महावीर का समवसरण. प्रवचन ङ- चमर अग्र महिषी काली देवी का आगमन. वंदन. नृत्य दर्शन. गमन च- कालीदेवी की ऋद्धि के सम्बन्ध में भ० गौतम की जिज्ञासा छ- भ० महावीर द्वारा समाधान. कूटागार शाला का दृष्टान्त. पूर्व भव का वर्णन ज- जंबूद्वीप. भरत आमलकप्पा नगरी. अंब-शाल वन. चैत्य. जित शत्रु राजा झ- काल गाथापति, कालश्रीभार्या, त्यक्ता काली पुत्री अ- भ० पार्श्वनाथ का समवसरण (भ० पार्श्वनाथ की ऊँचाई, श्रमण सम्पदा, श्रमणी सम्पदा) ट- काली का आगमन. धर्मश्रवण. पुष्पचूला आर्या के समीप प्रव्रज्या ग्रहण. इग्यारह अंगों का अध्ययन. तपश्चर्या की आराधना ठ- काली आर्या का पुनः पुनः अंगोपांग प्रक्षालन ड- पुष्पचूला आर्या की आज्ञा का उल्लंघन. भिन्न उपाश्रय में निवास ढ- पन्द्रह दिन की संलेखना. अनाचार का प्रायश्चित्त किये बिना देह त्याग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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