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________________ श्रु०१ अ०१६ ४५६ ज्ञाता०-सूची १४० क- भ० महावीर का समवसरण, धन्ना सार्थवाह का धर्मश्रवण, प्रव्रज्या ग्रहण, इग्यारह अंगों का अध्ययन, एक मास की संलेखना, सौधर्म देवलोक में देव होना, च्यवन, महाबिदेह में जन्म और निर्वाण ख- निग्रंथ निग्रंथियों को भ० महावीर की धर्मशिक्षा। उपसंहार एकोनविंशतितम पुण्डरीक अध्ययन १४१ क- उत्थानिका-जम्बूद्वीप. पूर्व विदेह. पुष्कलावती विजय. पुण्डरि किणी राजधानी. नलिनी वन उद्यान. महापद्म राजा. पद्मावती रानी. पुण्डरीक और कुण्डरीक दो राजकुमार ख- पुण्डरीक युवराज ग- स्थविरों का आगमन. धर्मश्रवण. पुण्डरीक को राज्यपद. कुण्ड रीक को युवराजपद. महापद्म की प्रव्रज्या. चौदहपूर्व का अध्य यन-यावत्-सिद्धपद १४२ स्थविरों का आगमन. धर्मश्रवण. पुण्डरीक का श्रमणोपासक बनना. कुण्डरीक की प्रव्रज्या. स्थविरों का विहार १४३ क- पित्तदाह से पीडित कुण्डरीक मुनि का स्वास्थ्य लाभ के लिए पुण्डरीकणी में आगमन. चिकित्सा. स्वास्थ्य लाभ. मनोज्ञ पदार्थों में आसक्ति. ख- पुण्डरीक का समझाना ग- कुण्डरी का राज्याभिषेक १४४ पुण्डरीक की प्रव्रज्या. चारयाम धर्म के आराधना की प्रतिज्ञा पुण्डरिकिणी से विहार. स्थविरों से मिलन १४५ क- पुण्डरीक को पित्तज्वर. मृत्यु. सप्तम नरक में उत्पत्ति. उत्कृष्ट स्थिति ख- निग्रंथ निग्रंथियों को भ० महावीर की शिक्षा १४६ क- पुण्डरीक की पुनः चातुर्याम धर्म आराधना करने की प्रतिज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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