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________________ स्थानांग-सूची १०५ श्रु०१, अ०२, उ०१ सूत्र ६४ दृष्टिका क्रिया दो प्रकार की पृष्टिका , , , ज- दो प्रकार की क्रिया प्रातीत्यिकी क्रिया दो प्रकार की सामन्तोपनिपातिकी ,, , झ- दो प्रकार की क्रिया स्वाहस्तिकी क्रिया दो प्रकार की नैसृष्टिकी , , , अ- दो प्रकार की क्रिया । आज्ञापनिका क्रिया दो प्रकार की वैदारिणी , , , ट- दो प्रकार की क्रिया अनाभोग प्रत्यया क्रिया दो प्रकार की अनवकांक्षा , " " ठ- दो प्रकार की क्रिया । अनायुक्त आदानता क्रिया दो प्रकार की ,, प्रमार्जनता , , , ___ ड- दो प्रकार की क्रिया प्रेम प्रत्ययिका क्रिया दो प्रकार की द्वेष , , , ६१ क-ख- गर्दा दो प्रकार की ६२ क-ख- प्रत्याख्यान दो प्रकार के ६३ मुक्त होने के दो कारण ६४ क- केवली कथित धर्म का श्रवण ख- बोधि की प्राप्ति ग- अनगार प्रव्रज्या घ- ब्रह्मचर्य वास - or or Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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