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________________ wwwm समवायांग-सूची २४४ समवाय ७८,८० अठहत्तरवाँ समवाय वैश्रमण-शकेन्द्र के लोकपाल के आधिपत्य में सुवर्ण कुमार और द्वीप कुमार के भवन स्थविर अकंपित का आयु सूर्य के उत्तरायन से लौटते समय दिन-रात की हानि सूर्य के दक्षिणायन से लौटते समय दिन-रात की हानि उनहत्तरवाँ समवाय वलयामुख पाताल कलश के अधस्तनभाग से रत्नप्रभा के अध स्तन भाग का अन्तर २ क- केतु पाताल कलश के अधस्तनभाग से रत्नप्रभा के अधस्तनभाग का जन्तर ख- यूपक पाताल कलश के अधस्तन भाग से रत्नप्रभा के अधस्तन भाग का आतर ग- ईसर पाताल कलश के अधस्तनभाग से रत्नप्रभा के अधस्तन भाग का अन्तर तमः प्रभा के मध्यभाग से तमः प्रभा के अधोवर्ती धनोदधि का अन्तर जम्बू द्वीप के प्रत्येक द्वार का अन्तर अस्सीवाँ समवाय भ० श्रेयांसनाथ की ऊँचाई त्रिपृष्ट वासुदेव की ऊँचाई अचल बलदेव की ऊँचाई त्रिपृष्ट वासुदेव का राज्यकाल अप्बहुल कांड का बाहल्य ईशानेन्द्र के सामानिक देव जम्बूद्वीप में आभ्यन्तर मण्डल में--सूर्योदय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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