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________________ ( ११ ) ३ विश्व की प्रमुख भाषाओं में जैनागमों का प्रकाशन । और ४ विश्व के शोध संस्थानों को जैन आगमों का उपहार । स्वाध्याय की प्रवृत्ति बढ़ाना (क) प्रत्येक धर्म स्थान में एक आगम पुस्तकालय स्थापित कराना। वह धर्म-स्थान मन्दिर हो या उपाश्रय, स्थानक हो या पौषध शाला । प्रत्येक क्षेत्र के स्थानीय संघ को आगम-स्वाध्याय के लिए उत्साहित करना । स्वाध्याय मण्डल की स्थापना करना । वर्षभर में समस्त आगमों का पारायण करनेवाले स्वाध्यायशील श्रमणोपासक को अ० भा० जैन संघ द्वारा सम्मानित या पुरस्कृत किया जाना । (ख) धर्मकथा करनेवाले श्रमणवर्ग या श्रमणोपासक वर्ग को जैनागमों का विशाल ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रबल प्रेरणा दी जाय । आगम ज्ञान की अभिवृद्धि के लिए वे स्वयं उत्सुक बने, ऐसा वातावरण बनाया जाय । प्रत्येक धर्म-कथक के लिए प्रति वर्ष किसी एक आगमिक विषय पर शोध निबन्ध लिखना अनिवार्य कर दिया जाय । जो धर्म कथक सर्वश्रेष्ठ महत्त्वपूर्ण निबन्ध लिखे उसे अ० भा० जैन संघ द्वारा सम्मानित किया जाय। (ग) आगम-पारायण का एक वार्षिक कार्यक्रम बनाया जाय और पारायण के माहात्म्य का इतना अधिक व्यापक विचार किया जाय किसर्वत्र वार्षिक पारायण प्रारम्भ हो जाय । जैनागमों के लोकप्रिय प्रकाशन आगम प्रकाशन का कार्य वैज्ञानिक पद्धति से होना आवश्यक है । १ वृद्धों व अल्प-पठित स्वाध्याय प्रेमियों को बड़े सुवाच्य अक्षरों में प्रका शित आगम प्रतियाँ प्रिय होती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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