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________________ भगवती-सूची २७६ श०१ उ०६ प्र०३०४ २६५ ण- अनागत काल का अगुरुलधुत्व त- सर्व " " " " नीग्रंथ जीवन निग्रंथों के लिए लघुता आदि प्रशस्त है " अक्रोध " " " २६४ निग्रंथों की अन्त: क्रिया के दो विकल्प अन्य तीर्थियों की मान्यता अन्य तीर्थी --एक समय में एक जीव के दो आयु का बंध भ० का महावीरएक समय में एक जीव के एक ही आयू का बंध पाश्र्वापत्य कालास्यवेषी अणगार और सथिवर २६६.२९७ क- सामायिक-सामायिक का अर्थ ख- प्रत्याख्यान-----प्रत्याख्यान " " ग- संयम --संयम घ- संवर -संवर अ- विवेक - विवेक च- व्युत्सर्ग -व्युत्सर्ग कालास्यवेषी के इन प्रश्नों का स्थविरों द्वारा समाधान २६८ क्रोधादि की निंदा का प्रयोजन २६६ गृही संयम और उसका प्रतिफल ३०० कालायस्वेशी द्वारा पंचमहाव्रत धर्म की स्वीकृति क्रिया विचार ३०१-३०२ शेठ, दरिद्र, कृपण और क्षत्रिय को समान अप्रत्याख्यान क्रिया लगती है, श्राहार विचार ३०३-३०४ आधाकर्म आहार करनेवाले निग्रंथ के दृढ कर्मों का बंध होता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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