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भगवती-सूची
३०५- ३०६ प्रासुक एषणीय आहार करने वाले निर्ग्रथ के शिथिल कर्मों का बंध होता है
३०७ क - अस्थिर में परिवर्तन होता है।
ख- स्थिर में परिवर्तन नहीं होता है।
ग- बाल और पंडित शास्वत हैं
घ- बालकपन और पंडितपन अशास्वत है
झ०२३०१ प्र०५
३०८
३०६
३१०
३११
३१२-३१३
३१४- ३१५
३२६
दशम चलन उद्देशक
अन्य तीथिकों की मान्यताएँ
तीन परमार पुद्गलों का चिपकना
पांच परमाणु पुद्गलों के चिपकने से कर्मबंध बोलने से पूर्व या पश्चात् भाषा
पूर्व क्रिया या पश्चात् क्रिया दुःख का हेतु है अकृत्य दुःख है
३१६
३१७-३२४ भ० महावीर द्वारा इन सात मान्यताओं का समाधान
१-५
२८०
चलमान अचलित यावत् - निर्जीयमान अनिर्जीण दो परमाणु पुद्गलों का न चिपकना
३२५ क- एक समय में दो क्रिया
"} 11
ख
एक क्रिया
अन्य तीर्थियों की मान्यता और उसका निराकरण
11
उपपात विरह
चौवीस दण्डकों में उपपात विरह
द्वितीय शतक
प्रथम उच्छवास स्कंदक उद्देशक
पृथ्वी काय यावत्-वनस्पतिकाय के श्वासोच्छ्वास का पौद्गलिक
रूप
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