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________________ २८१ ६-७ श०२ उ०१ प्र०१८ - भगवती-सूची चौवीस दण्डकवर्तीजीवों के श्वासोच्छवास का पौद्गलिक रूप ८ वायुकाय वायुकाय का ही श्वासोच्छ्वास लेता है " में उत्पन्न होता है वायुकाय के जीव आघात से मरते हैं ११-१२" " सशरीरी एवं अशरीरी भी मरते हैं प्रासुक भोजी अनगार १३ अनिरुद्ध भववाले प्रासुक भोजी (मृतादि) निग्रंथ को पुनः मनुष्य भव की प्राप्ति १४-१५ उस निग्रंथ के छह नाम १६ निरुद्ध भववाले प्रासुक भोजी निग्रंथ की मुक्ति १७ उस निग्रंथ के छह नाम स्कंदक परिव्राजक क- स्कंदक परिव्राजक का संक्षिप्त परिचय क- स्कंदक से पिंगल निग्रंथ के प्रश्न ग- लोक सान्त अनन्त घ- जीव " " ङ- सिद्धि " च- सिद्ध " " छ- संसार वृद्धि करने वाला मरण ज- समाधान के लिए भ० महावीर के समीप स्कंदक का गमन झ- भ० महावीर के कथन से स्कंदक के स्वागत के लिये श्री गौतम गणधर का जाना अ- भ० महावीर के समीप गौतम के साथ-साथ स्कंदक का पहुंचना ट- भ० महावीर द्वारा स्कंदक के (पिंगल निग्रंथ के प्रश्नों से उत्पन्न) संशयों का समाधान ठ- भ. महावीर के समीप स्कंदक का प्रवज्या ग्रहण ड- स्कंदक का एकादशांग अध्ययन, भिक्षु पडिमाओं की आराधना. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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