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________________ -श्रु०१ अ०१७ ४५७ ज्ञाता०-सूची ग- भ० नेमनाथ की वंदना हेतु जाने के लिए स्थविरों से आज्ञा प्राप्त करके विहार करना घ- पाण्डव मुनियों का हस्तिकल्प नगर के सहस्राम्रवन में पहुँचना ङ- पाण्डव मुनियों को भ० अरिष्ट नेमनाथ के (शैलशिखर पर) निर्वाण होने के समाचार मिलना च- पाण्डव मुनियों की शत्रुञ्जय पर्वत पर अंतिम आराधना. दो मास की संलेखना. सिद्धपद की प्राप्ति २३१ क- द्रौपदी आर्या की अन्तिम आराधना, ब्रह्मलोक कल्प में द्रपद देव होना, दस सागर की स्थिति, च्यवन, महाविदेह में जन्म और निर्वाण सप्तदशम अश्व अध्ययन १३२ क- उत्थानिका, हस्तिशीर्ष नगर, कनककेतु राजा ख- सांयात्रिक (नौका) व्यापारियों की लवणसमुद्र यात्रा ग- अकालवायु-निर्यामक का दिङ्मूढ होना घ- इन्द्रादि की पूजा करना, दिशाबोध होने पर कालिक द्वीप पहँचना ङ- कालिक द्वीप में हिरण्य स्वर्ण आदि की खान तथा अश्वरत्न देखना च- हिरण्य स्वर्ण आदि बहुमूल्य पदार्थ जहाजों में भरकर हस्ति शीर्ष नगर पहुँचना छ- कनककेतु महाराजा को बहुमूल्य पदार्थों की भेंट २३३ क- कालिक द्वीप के अश्वरत्नों के सम्बन्ध में महाराजा से निवेदन ख- राजपुरुषों के साथ जाकर अश्वरत्न लाने का राजा का आदेश ग- शब्द गन्ध रस एवं स्पर्शजन्य आसक्ति की अभिवृद्धि करने वाले पदार्थ जहाज में भर कर सांयात्रिक व्यापारियों का कालिक द्वीप पहुंचना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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