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________________ अ० सू०२६७ २४२-२४५ २५२ २५३ २५४ २५५-२६० २४६-२४८ क- उपासक प्रतिमाओं की आराधना ख- महाशतक को अवधि ज्ञान, संलेखना २४६-२५१ क- मदमस्त रेवती का पुनः महाशतक के समीप पोषधशाला पहुँचना तथा धर्म आराधना में बाधा पहुँचाना - ख- क्रुद्ध महाशतक ने कहा- - रेवती ! तेरी अलसरोग से मृत्यु होगी तथा तू प्रथम नरक में जावेगी भयभीत रेवती का प्रत्यागमन २६१ २६२ २६३ २६४ उपासक दशा-सूची कामुकी रेवती का महाशतक के प्रति कुत्सित व्यवहार महाशतक की दृढता २६५ ४८० रेवती का नरक गमन भ० महावीर का समवसरण भ० महावीर ने महाशतक के लिये गौतम के साथ संदेश भेजा कि रेवती को कहे गये अप्रिय सत्य का प्रायश्चित करो महाशतक का प्रायश्चित्त करना गौतम स्वामी का भ० महावीर के समीप पहुँचना भ० महावीर का विहार क- महाशतक का बीस वर्ष का श्रमणोपासक जीवन ख- महाशतक का अरुणावतंसक विमान में देव होना, चार पत्य की स्थिति, महाविदेह में जन्म और निवार्ण नवम नंदिनी पिता अध्ययन एक उद्देशक क- उत्थानिका - श्रावस्ती नगरी, कोष्ठक चैत्य, जितशत्रु राजा ख- नंदिनीपिता गृहस्थ, सम्पति के तीन विभाग, चार व्रज अश्विनी भार्या Jain Education International २६६-२६७ क- भ० महावीर का समवसरण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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