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________________ श्रु०१, अ०६, उ०१ सू० ५१७ १७४ स्थानांग-सूची ५०५ क- शकेन्द्र के सोम लोकपाल की छह अग्रमहिषियां ख- , , यम , ,,, , ५०६ ईशानेन्द्र के मध्य परिषद् के देवों की स्थिति ५०७ छह दिक् कुमारियाँ, छह विद्युत् कुमारियाँ ५०८ क- धरण नागेन्द्र की छह अग्रमहिषियाँ ख- भुतानन्द ,, ,, , . ग- शेष (दक्षिण उत्तर) भवनेन्द्रों की ६-६ अग्रमहिषियाँ ५०६ क- धरण नागेन्द्र की ६ सहस्र सामान्य देवियाँ ख- भूतानन्द ,, ,, ,, ,, ,, ,, ग- शेष (दक्षिण-उत्तर) भवनेन्द्रों की ६ हजार सामान्य देवियाँ ५१० ज्ञान के भेद क- छह प्रकार की अवग्रह मति ख- ,, ,, ,, ईहा मति ग- , , ,, अवाय मति ,,, धारणा ५११ तप के भेद । क- छह प्रकार का बाह्य तप ख- , , ,, आभ्यन्तर तप ५१२ ,, ,, ,, विवाद " " के क्षुद्रप्राणी ५१४ एषणा समिति-छह प्रकार की भिक्षाचर्या ५१५ क- रत्नप्रभा के छह नरकावासों के नाम ख- पंकप्रभा " " " " ५१६ ब्रह्मलोक में छह विमान प्रस्तट ५१७ क- चन्द्र के साथ तीस मुहूर्त रहनेवाले छह नक्षत्र ख. , के साथ पंद्रह मुहूर्त रहनेवाले छह नक्षत्र ग- " " " पेंतालिस" ॥ ॥ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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