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________________ सूर्यप्रज्ञप्ति-सूची ७३४ प्राभृत ८ सूत्र २६ ङ- सूर्य के उर्ध्व व अघो एवं तिर्यक् ताप क्षेत्र का परिमाण पंचम प्राभृत २६ क- सूर्य की लेश्या-ताप का प्रतिघातक इस विषय में अन्य वीस प्रतिप्रत्तियाँ ख- स्वमत का प्रतिपादन षष्ठ प्राभत २७ क. सूर्य की ओज संस्थिति-संबन्ध में अन्य पच्चीस प्रतिपत्तियाँ ख- अवगाहित मण्डल की अपेक्षा अवस्थित और अनवगाहित मण्डल की अपेक्षा अनवस्थित ओज संस्थिति-इस प्रकार स्वमत सापेक्ष कथन सप्तम प्राभृत २८ क- सूर्य से प्रकाशित स्थूल और सूक्ष्म पदार्थ इस विषय में अन्य वीस प्रतिपत्तियाँ ख- स्व पक्ष प्रतिपादन अष्टम प्राभूत २६ क- सूर्य की उदयदिशा के सम्बन्ध में अन्य तीन प्रतिपत्तियां ख- स्वमत में—भिन्न भिन्न क्षेत्रों की अपेक्षा सूर्योदय की भिन्न भिन्न दिशाओं का कथन ग- दक्षिणायन और उत्तरायण में सूर्य की उदय दिशा तथा जघन्य उत्कृष्ट अहोरात्र का परिमाण घ. जम्बूद्वीप के दक्षिणार्ध और उत्तरार्ध में ऋतु अयन आदि का कथन ङ- जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से पूर्व-पश्चिम में जिस समय दिन है उस समय दक्षिण उत्तर में रात्रि है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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