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________________ प्राभृत १० सूत्र ३४ ७३५ सूर्य प्रज्ञप्ति सूची च - लवण समुद्र के दक्षिण उत्तर में जिस समय दिन है उस समय पूर्व-पश्चिम में रात्रि है छ- भिन्न भिन्न क्षेत्रों की अपेक्षा उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल का कथन ज- धातकी खण्ड में दिन-रात्रि तथा उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी झ - कालोद में लवणोद के समान ञ - पुष्करार्ध में दिन रात्रि तथा उत्सर्पिणी - अवसर्पिणी नवम पौरुषी छायाप्रमाण प्राभृत ३० क- पौरुषी छाया का मूल कारण इस विषय में अन्य तीन प्रतिपत्तियाँ ख- स्वमत का सम्यक् प्रतिपादन ३१ क- सूर्य से पौरुषी छाया के मूल विभाग इस विषय में अन्य पच्चीस प्रतिपत्तियाँ ३३ ३४ ख- स्वमत का सम्यक् निरूपण ग- दिन के विभागों के अनुसार पौरुषी छाया इस विषय में अन्य छियानवे प्रतिपत्तियाँ घ- स्वमत का सम्यक् समर्थन ङ. पच्चीस प्रकार की छाया दशम प्राभृत प्रथम प्राभृत-प्राभृत ३२ क- चन्द्र-सूर्य के साथ नक्षत्रों का योग, अन्य पाँच प्रतिपत्तियाँ ख- स्वमत कथन द्वितीय प्राभृत-प्राभृत चंद्र के साथ योग करने वाले नक्षत्रों का मुहूर्त परिमाण सूर्य के साथ योग करने वाले नक्षत्रों का मुहूर्त परिमाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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