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________________ सूर्यप्रज्ञप्ति-सूची ७३६ प्राभृत १० सूत्र ४४ तृतीय प्राभृत-प्राभूत पूर्व भाग पश्चिम भाग और उभयभाग से चन्द्र के साथ योग करने वाला नक्षत्र चतुर्थ प्राभूत-प्राभूत युग के प्रारम्भ में योग करने वाले नक्षत्रों का पूर्वादि विभाग पंचम प्राभृत-प्राभूत नक्षत्रों के कुल, उपकुल और कुलोपकुल षष्ठ प्राभत-प्राभत । ३८ क- बारह पूर्णिमाओं में नक्षत्रों का योग ख. बारह अमावस्याओं में नक्षत्रों का योग ३६ क- बारह पूर्णिमाओं में नक्षत्रों का कुल, उपकुल और कुलोपकुल ख- बारह अमावास्याओं में नक्षत्रों का कुल , उपकुल और कुलोपकुल सप्तम प्राभूत-प्राभूत समान नक्षत्रों के योगवाली पूर्णिमा और अमावस्यायें अष्टम प्राभत-प्राभूत नक्षत्रों के संस्थान नवम प्राभूत-प्राभृत नक्षत्रों के तारे दशमाँ प्राभृत-प्राभृत वर्षा, हेमन्त और ग्रीष्म ऋतुओं में मासक्रम से नक्षत्रों का योग तथा पौरुषी प्रमाण इग्यारहवाँ प्राभृत-प्राभूत ४४ दक्षिण, उत्तर और उभयमार्ग से चन्द्र के साथ योगकरने वाले नक्षत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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