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________________ श्रु० १ अ०२ उ०३ गाथा २२ ६६ ४ सुखैषी एवं कामी पुरुष समाधि के रहस्य को नहीं समझ सकता आत्म बलहीन साधक को दुर्बल बैल की उपमा, संयम-भार कामभोग निवृत्त होने का उपदेश विषयों से निवृत्त होने का उपदेश, कामी की दुर्दशा 6. ८ ह १० ११ १२ क ख क ख १३ १४ क ख सूत्रकृतांग सूची महाव्रतों की रत्नों से तुलना - रत्नों का धारक राजा होता है और महाव्रतों का धारक महात्मा होता है - महाव्रत १५ १६ १७ १८ १६ आसक्त पुरुष की अकाल मृत्यु हिंसक की गति बाल तपस्वी की गति बालजन की मान्यता, जीवन में पापाचरण वर्तमान सुख की कामना, पुनर्जन्म के प्रति अनास्था सर्वज्ञ की वाणीपर श्रद्धा करने का उपदेश, मोहान्ध की अश्रद्धा स्तुति-पूजा का निषेध समत्व का उपदेश समभावी एवं सुव्रती पुरुष की देवगति संयम में पुरुषार्थ करने का उपदेश इर्या का निषेध संवर धर्म और तप के आचरण का उपदेश त्रिगुप्त होकर परमार्थ के लिये प्रयत्न करने का उपदेश वित्त, पशु और स्वजन - रक्षक नहीं है ( अशरण भावना ) मृत्यु आनेपर एकाकी जाना पड़ता है, धनादि से रक्षा नहीं होती कर्मानुसार दुःख, जन्म-जरा-मरण एवं भव भ्रमण ( कर्म-फल ) मनुष्य जन्म और बोधि की दुर्लभता का चिंतन सभी तीर्थंकरों का समान कथन २०-२२ गुणों के सम्बन्ध में तीर्थंकरों की और उनके अनुयायियों की समान प्ररूपणा - एक वाक्यता ग शुद्ध आहार लेने का उपदेश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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