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________________ सूत्रकृतांग-सूची गाथांक २-३ ४ ૭ ८ ६-१० ११ १२ १३ १४-१५ १६ १७ ७० श्रु० १, अ०३, उ०१ गाथा १७ तृतीय उपसर्ग अध्ययन प्रथम प्रतिकूल - उपसर्ग उद्देशक भीरू भिक्षु को शिशुपाल की और उपसर्गों को महारथी श्रीकृष्ण की उपमा भीरू भिक्षु को कायर पुरुष की ओर उपसर्गों को योद्धा या युद्ध की विभीषिका की उपमा शीतपीडित श्रमण को राज्यहीन क्षत्रिय की उपमा, शीतपरीषह ग्रीष्म और पिपासा से पीडित भिक्षु को पानी के अभाव में तड़फती हुई मछली की उपमा, उष्ण-पिपासा परीषह आक्रोस, यांचा परीषह आक्रोश परीषह भीरू भिक्षु को संग्राम भीरू की उपमा वध परीषह पीड़ित भिक्षु को कुत्ते के काटने पर अग्निदाह के समान वेदना आक्रोश परीषहद्रोही पुरुषों के क्रूर वचन क्रूर वचनों का फल १ दंश-मशक परीषह २ तृष्णस्पर्श परीषह उपसर्ग जन्य प्रत्यक्ष दुःख से परलोक के प्रति अनास्था केशलोच और ब्रह्मचर्य के कष्ट से पीड़ित भिक्षु को जाल में फंसी हुई मच्छली की उपमा Jain Education International वध परीषह - अनार्य पुरुषों द्वारा किये गये उपसर्ग दण्ड, वध परीषह घर से निकली हुई क्रुद्धा स्त्री के स्वजन के समान मुष्टि आदि द्वारा प्रताडित भिक्षु का स्वजन स्मरण उपसर्ग पीड़ित भिक्षु का संयम छोड़कर पलायन, बाण विद्ध गजराज के पलायन के समान है For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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