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________________ श्रु० १, अ० ६, उ० १ सू०७०२ १६३ ६६० ६६१ ६६२ ६६३ ६६४ ६६५ ६६६ ६६७ ६६८ ६६६ ७०० ७०२ छ- जम्बुद्वीप के विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वतपर नव कूट ज 31 पद्मप्रभ शेष सूत्र ६३७ के "ग" से "च" तक के विजयो में दीर्घ वैताढ्य पर्वतों पर नव-नव कूट झ - जम्बुद्वीप के मेरुपर्वत से उत्तर में नीलवंत वर्षधर पर्वत पर नव कूट ज- जम्बुद्वीप के मेरुपर्वत से एरवत में दीर्घ वैताढ्य पर्वत पर नव कूट " महापद्म चरित्र चन्द्र के साथ पीछे से योग करनेवाले नव नक्षत्र भ. पार्श्व नाथ की ऊंचाई भ० महावीर के तीर्थ में तीर्थंकर गोत्र नाम कर्म बांधने वाले आगामी उत्सर्पिणी में होनेवाले नव तीर्थंकरों में नाम ७०१ क- चतुरिन्द्रियों की कुलकोटी ख- भुजगों की 17 घनतादि ४ अंतद्विपों का आयाम विष्कम्भ शुक्र महाग्रह की नव विथियाँ नव कषाय वेदनीय कर्म की नव प्रकृतियाँ " आनत आदि चार देवलोकों में विमानों की ऊंचाई विमल वाहन कुलकर की ऊंचाई भ० ऋषभदेव का तीर्थ प्रवर्तन काल Jain Education International 77 "" नव स्थानों में पापकर्म के पुद्गलों का त्रैकालिक चयन " 77 "" उपचयन बंध उदीरणा 11 " 21 स्थानांग-सूची 11 " "" 77 33 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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