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________________ w w w श्रु०१, अ०६, उ०१ सूत्र ६८६ १६२ स्थानांग-सूची ६७७ नव पाप स्थान ६७८ नव पाप श्रुत नव निपुण आचार्य भ० महावीर के नव गण " " " निग्रंथों की नव कोटि शुद्ध भिक्षा . ६८२ ईशानेन्द्रों के वरुण लोकपाल की नव अग्रमहिषियां ६८३ क- ईशानेन्द्र की अग्रमहिषियों की स्थिति ख- ईशान कल्प में देवियों की स्थिति नव देव-निकाय अव्याबाध देव और उनका परिवार अगिच्चा " " " , रिट्टा " " " " ६८५ नव नैवेयक विमान प्रस्तर नव प्रकार का आयु परिणाम ६८७ नव नवमिका भिक्षु प्रतिमा का परिमाण ६८८ नव प्रकार आ प्रायश्चित्त ६८४ ४ or ६८६ क- जंबुद्वीप के दक्षिण भरत में दीर्घ वैताढय पर्वतपर नव कूट " " " निषध " " " " " मेरु पर्वत पर नन्दन वन में नव कुट घ- " " माल्यवंत वक्षस्कार पर्वत पर नव कुट " कच्छ में दीर्घ वैताढ्य पर्वतपर नव कूट च- " " सूकच्छ में" " " कट शेष सूत्र ६३७ के “ग' से 'च तक के विजयों में दीर्घ वैताढ्य पर्वत पर नव नव कूट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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