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________________ अ० २६ गाथा ४ ८०४ उत्तराध्ययन-सूची १७ १८ mr उसी वाराणसी में विजयघोष का यज्ञ करना मासोपवास के पारणे के लिये जयघोष का विजयघोष के यज्ञ में जाना विजय घोष का भिक्षा न देना यज्ञान्न के अधिकारियों का वर्णन ६-१२ क- जयघोष का समभाव ख- विजयघोष के कतिपय प्रश्न १३-१५ समाधान के लिये विजयघोष की प्रार्थना जयघोष द्वारा समाधान भ० काश्यप, भ० ऋषभदेव की महिमा यज्ञवादी ब्राह्मणों की दशा १९-२६ वास्तविक ब्राह्मण का वर्णन वेद विहित यज्ञ का वर्णन ३१-३२ श्रमण, ब्राह्मण, मुनि और तापस की व्याख्या वर्णाश्रम व्यवस्था का मूल आधार कर्म । कर्ममूलक व्यवस्था का प्रतिपादक ही सच्चा ब्राह्मण गुणी ब्राह्मण से ही स्व-पर का कल्याण ३६-४० क- विजय घोष की जयघोष से भिक्षा के लिये प्रार्थना ख- जयघोष का विजयघोष को विरति का उपदेश भोगी और भोग मुक्त की गति ४२-४३ भोगी और भोग मूक्त को दो गोलों की उपमा ४४-४५ उपसंहार-विजयघोष की श्रमण प्रव्रज्या, जयघोष विजयघोष की सिद्धि छब्बीसवाँ समाचारी अध्ययन श्रमण-समाचारी का कथन २-४ समाचारी के दस भेद mr m Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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