SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 992
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महानिशीथ-सूची अ० ३ पृ० १० मोक्ष प्राप्त करनेवाली निःशल्य' श्रमणियों के नाम पृ० १४ अपने अपराध छुपाने वालों की दुर्गति पृ० १६ दशवकालिक की गाथा (गाथा १६६) प्रथम अध्ययन के अंत में "मैंने इसे अच्छा नहीं लिखा ऐसा मुझ पर दोष नहीं दिया जाय क्योंकि मेरे समक्ष जो आदर्श प्रति है पर त्रुटि है ।"सा लिखा हैं । द्वितीय अध्ययन 'कम् विनामवागरण' प्रथम उद्देश (पर ३० में सम्पूर्ण हुआ है) (द्वितीय से पंचम उद्देश के प्रयन् लुप्त मालूम होता है) पृ० २० जीवों का दुःख-वर्णन छठा उद्देश पृ० २६ शारीरिक और अन्य दुःसी का वर्णन । आश्रवद्वार के निरोध से दुःखों का अन्त सातवाँ उद्देश पृ० २६ स्त्रीवर्जन का उपदेश स्त्रीवर्जन सम्बन्धी गौतम-महावीर संवाद पृ० ३७ अधमादि पुरुषों की स्त्री अभिलाषा तथा स्त्रियों के काम राग का वर्णन पृ. ४५ परिग्रह दोष श्रमण और श्रावक धर्म के दो पंथ तृतीय अध्ययन (तृतीय उद्देश) प्रारंभ में लिखा है कि उपर्युक्त दोनों अध्ययनों का समावेश सामान्य वाचना में है इसके बाद के चार अध्ययन (३-६) योग्य के लिए ही है । अयोग्य ब्यक्ति के लिए नहीं है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy