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________________ अ० २ गाथा ५ ७८२ उत्तराध्ययन-सूची ख- शान्त रहने का तथा निन्दा-स्तुति में समान रहने का विधान १५ आत्म दमन-निग्रह-का उपदेश १६ दमन की परिभाषा १७ प्रतिकूल आचरण का निषेध १८-१६ गुरुजनों के समीप बैठने के विधि २०-२२ गुरुजनों के बुलाने पर शीघ्र उपस्थित होने का विधान २३ क- विनयी को सूत्रार्थ की प्राप्ति ख- गुरुजनों के पूछने पर यथार्थ कहने का विधान २४-२५ भाषा-विवेक अकेली स्त्री के समीप बैठने का तथा उसके साथ आलाप संलाप का निषेध २७-२६ गुरुजनों के कठोर अनुशासन से स्वहित ३० बैठने का विवेक । ३१-३६ गवेषणा, ग्रहणषणा और ग्रासषणा सम्बन्धी विवेक ३७ क- विनयी को अच्छे अश्व की और अविनयी को अडियल टट्ट की उपमा ख- गुरुजनों को विनयी से सुख, अविनयी से दु:ख ३८-४४ गुरुजनों के कठोर अनुशासन से स्वहित ४५ उपसंहार-विनयी की सर्वत्र प्रशंसा ४६ विनयी को सार्थ श्रुत का लाभ ४७-४८ विनयी को उभयलोक में सुख द्वितीय परिषह अध्ययन १.३ क- भ० महावीर द्वारा परिषहों का उपदेश ____ ख- बावीस परिषहों के नाम १ परिषहों का वर्णन सुसने के लिये प्रेरणा २-३ (१)क्षुधा परिषह का वर्णन ४-५ (२) पिपासा परिषह का , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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