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श०१४ उ०४-५ प्र०५१
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ख- अनगार के मध्य में होकर गमन करने के हेतु
असुर- यावत्-वैमानिक देव का भावित आत्मा अनगार के मध्य में होकर गमन करना विनय विचार
२४- २६ चौवीस दण्डकों में विनय
मध्यगति
अल्पऋद्धिवाले देव का महधिक देव के मध्य में होकर गमन
करना
समान ऋद्धिवाले देव का समान ऋद्धिवाले देव में होकर
गमन करना
२९-३० शस्त्र प्रहार करने के पूर्व या पश्चात् देवगति
२८ ।
पुद्गल
नैरयिकों का पुद्गलानुभव चतुर्थ पुद्गल उद्देशक
३२-३३ अतीत, अनागत और वर्तमान में
३१
भगवती-सूची
पुद्गल परिणमन
३४ अतीत, अनागत और वर्तमान में पुद्गल स्कंध का परिणमन अतीत, अनागत और वर्तमान में जीव का परिणमन
३५
३६
पुद्गल कथंचित् शास्वत-अशास्वत
३७
परमाणु कथंचित् चरम - अचरम
३८
दो प्रकार के परिणाम
पंचम अग्नि उद्देशक
३६-४२ चौबीस दण्डक के जीव अग्नि के मध्य में होकर गमन करते हैं ४३-४६ चौबीस दण्डक के जीवों को दश प्रकार के अनुभव
देव वैय
५०-५१ महद्धिक देव का पर्वतोल्लंघन
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