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श० १३ उ०२-३ प्र०३७
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भगवती-सूची
ख- सम्यग्दृष्टि आदि का अविरह ग- शर्करा प्रभा-यावत्-तमः प्रभा में रत्नप्रभा के समान घ- रत्नप्रभा के असंख्याता योजन वाले नरकावासों में सम्यग्दृष्टि
आदि की उत्पत्ति, उद्वर्तन, सत्ता सप्तम पृथ्वी के पांच नरकवासों में मिथ्यादृष्टि की उत्पत्ति,
उद्वर्तन, सत्ता १६-२१ अन्य लेश्यावाले कृष्ण, नील, कापोत लेश्या रूप में परिणत
होकर नरक में उत्पन्न होते हैं द्वितीय देव उद्देशक चार प्रकार के देव दश प्रकार के भवनवासी देव असुर कुमारों के आवास संख्यात या असंख्यात योजन वाले आवासों में एक समय में उत्पन्न होने वाले जीव नागकुमार-यावत् स्तनित कुमार असुर कुमारों के समान व्यंतर देवों के समान
व्यंतर देवों के आवासों में एक समय में उत्पाद, उद्वर्तन और सत्ता २६ क- ज्योतिषिक देवों के आवास ख- ज्योतिषीदेवों के आवासों में एक समय में जीवों का उपपात,
उद्वर्तन और मरण ३०-३५ सौधर्म-यावत्-सर्वार्थसिद्ध विमानों में एक समय में जीवों का
उपपात, च्यवन, और सत्ता ३६. कृष्णादि लेश्यावाले जीव देवों में कृष्णादि लेश्यारूप में परिणत
होने पर उत्पन्न होते हैं तृतीय नरक उद्देशक नरक और नैरयिक नैरयिक अनन्तराहारी है
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