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भगवती-सूची
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श०१३० उ०१प्र०१७
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१३७ चौबीस दण्डक में आत्मा का रूप १३८ आत्मा दर्शन स्वरूप है १३६ चौवीस दण्डक में आत्मा दर्शनरूप है १४०-१४४ रत्नप्रभा-यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी सदसद्रूप है १४५ क- एक परमाणु-यावत्-अनन्त प्रदेशिक स्कंध सदसद् रूप हैं ख- सदसद् रूप कहने का हेतु
तेरहवां शतक
प्रथम पृथ्वी उद्देशक १ क- राजगृह
ख- सात पृथ्वियां २ क- रत्नप्रभा के नरकावास
रत्नप्रभा के संख्याता योजन विस्तार वाले नरकावासो में एक समय में उत्पन्न होने वाले जीव (उनचालीस विकल्प) रत्नप्रभा के नरकावासों में एक समय में उद्वर्तन-मरने वाले जीव रत्नप्रभा में नारकजीवों की सत्ता रत्नप्रभा के असंख्याता योजन विस्तार वाले नरकावासो में
एक समय में जीवों की उत्पत्ति उद्वर्तन और सत्ता ७-१२ शर्करा प्रभा-यावत-तमः प्रभा का वर्णन १३ क- सप्तम नरक के पांच नरकावास ख- नरकावासों का विस्तार पांच नरकावासों में एक समय में जीवों की उत्पत्ति, उद्वर्तन और सत्ता रत्नप्रभा के संख्याता योजन विस्तार वाले नरकावासों में सम्यक्
दृष्टि आदि की उत्पत्ति १६-१७ क- सम्यग्दृष्टि आदि का उद्वर्तन-मरण
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