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________________ भगवती-सूची ३५० श०१३० उ०१प्र०१७ m १३७ चौबीस दण्डक में आत्मा का रूप १३८ आत्मा दर्शन स्वरूप है १३६ चौवीस दण्डक में आत्मा दर्शनरूप है १४०-१४४ रत्नप्रभा-यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी सदसद्रूप है १४५ क- एक परमाणु-यावत्-अनन्त प्रदेशिक स्कंध सदसद् रूप हैं ख- सदसद् रूप कहने का हेतु तेरहवां शतक प्रथम पृथ्वी उद्देशक १ क- राजगृह ख- सात पृथ्वियां २ क- रत्नप्रभा के नरकावास रत्नप्रभा के संख्याता योजन विस्तार वाले नरकावासो में एक समय में उत्पन्न होने वाले जीव (उनचालीस विकल्प) रत्नप्रभा के नरकावासों में एक समय में उद्वर्तन-मरने वाले जीव रत्नप्रभा में नारकजीवों की सत्ता रत्नप्रभा के असंख्याता योजन विस्तार वाले नरकावासो में एक समय में जीवों की उत्पत्ति उद्वर्तन और सत्ता ७-१२ शर्करा प्रभा-यावत-तमः प्रभा का वर्णन १३ क- सप्तम नरक के पांच नरकावास ख- नरकावासों का विस्तार पांच नरकावासों में एक समय में जीवों की उत्पत्ति, उद्वर्तन और सत्ता रत्नप्रभा के संख्याता योजन विस्तार वाले नरकावासों में सम्यक् दृष्टि आदि की उत्पत्ति १६-१७ क- सम्यग्दृष्टि आदि का उद्वर्तन-मरण x x w Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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