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________________ सूत्र ३३-३४ ५५५ राज प्र० सूची ३३ क - उपकारिकालयन मध्यवर्ती मुख्य प्रासाद की ऊँचाई, विष्णु भ आदि ख- मुख्य प्रासाद के पाश्र्ववर्ती प्रासादों की ऊँचाई- विष्कम्भावादित ३४ क- मुख्य प्रासाद के उत्तर-पूर्व में सुधर्मा सभा ख- सुधर्मा सभा का आयाम - विष्कम्भ ऊँचाई, आदि ग- सुधर्म सभा के तीन दिशाओं में तीन द्वार प्रत्येक द्वार की ऊँचाई और विष्कम्भ प्रत्येक द्वार के अग्रभाग में एक-एक मुख्य म मुख-मण्डपों का आयाम - विष्कम्भ और ऊँचाई मुख-मण्डपों का आयाम - 1 म - विष्कम्भ और बाई मुख-मण्डपों के तीन तिन दिशाओं में तीन द्वार, द्वारों की ऊँचाई और विष्कम्भ प्रत्येक द्वार के अग्रभाग में एक-एक प्रेक्षाधर मंडप प्रत्येक प्रेक्षाघर मण्डप के मध्य भाग में एक-एक अखाड़ा प्रत्येक अखाड़े के मध्य भाग में एक-एक मणिपीठिका मणिपीठिकाओं का आयाम - विष्कम्भ और ऊँचाई प्रत्येक मणिपीठिका पर एक-एक सिंहासन प्रत्येक प्रेक्षाघर मण्डप के अग्रभाग में एक-एक मणिपीठिका प्रत्येक मणिपीठिका का आयाम - विष्कम्भ और बाहल्य प्रत्येक मणिपीठिका पर एक स्तूप प्रत्येक स्तूप का आयाम -- विष्कम्भ और ऊँचाई प्रत्येक स्तूप के चारों दिशाओं में एक-एक मणिपीठिका प्रत्येक मणिपीठिका पर चारों दिशाओं में स्तूपाभिमुख चार चार जिन प्रतिमाएँ प्रत्येक स्तूप के सामने एक-एक मणिपीठिका प्रत्येक मणिपीठिका का आयाम - विष्कम्भ और बाहल्य प्रत्येक मणिपीठिका पर एक एक चैत्य वृक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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