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________________ राज प्र० सूची ५५४ सूत्र २६-३२ प्रत्येक तोरण के आगे दो प्रशस्त चमर तेल पात्र ढ- सूर्याभ विमान के प्रत्येक द्वार पर विविध प्रकार की १०८ .१०८ ध्वजाएं ण- सूर्याभ विमान में ६५-६५ तलघर तलघरों के द्वारों पर सोलह-सोलह रत्न ,, अष्ट-अष्ट मंगल त- सूर्याभ विमान के चार दिशाओं के चार हजार द्वार थ- सूर्याभ विमान के चार दिशाओं में चार वनखण्ड प्रत्येक वनखण्ड का आयाम-विष्कम्भ २६ वनखण्ड की तृणमणियों के स्वर का वर्णन ३० क- वनखण्ड की वापियों का वर्णन ख. वनखण्ड के उत्पात पर्वतों का वर्णन ग- वनखण्डवर्ती मण्डपों का वर्णन घ. झूलों का वर्णन ङ- , . शिलापट्टों का वर्णन क- वनखण्ड के प्रासादों की ऊंचाई आयाम-विष्कम्भ ख- प्रत्येक प्रासाद में एक-एक देवता, उन. देवताओं की स्थिति ग- प्रत्येक वनखण्डवर्ती उपकारिकालयन का आयाम-विष्कम्भ, परिधि, बाहल्य, मोटाई ३२ क- पद्मवरवेदिका की ऊँचाई, विष्कम्भ, परिधि ख- पद्मवरवेदिका का वर्णन ग- पद्मवरवेदिका कथंचित् नित्य और कथंचित् अनित्य-अर्थात् --शास्वत घ- वनखण्ड का चक्रवाल विष्कम्भ ङ- उपकारिकालयन का वर्णन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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