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________________ ग- ॥ ३६२ क-ग- चार प्रकार ,, मति स्थानांग-सूची १६० श्रु०१, अ०४उ०४ सू० ३७२. मलिन हृदय, पवित्र हृदय चार प्रकार के कुम्भ, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष चार प्रकार के उपसर्ग उपसर्ग देवकृत , मानवकृत तिर्यंचकृत स्वयंकृत के कर्म ३६३ , , का संग ३६४ क- , " की बुद्धि . ख-, , ३६५ क- , के संसारी जीव ___ ख-ङ-, , सर्व , ३६६ क- मित्र 'शत्रु चार प्रकार के पुरुष ख- मुक्त अमुक्त , , ३६७ क- गति--आगति. तिर्यंच पंचेन्द्रिय की गति-आगति ख- मनुष्य की ३६८ क- बेइन्द्रिय जीवों की रक्षा से चार प्रकार का संयम ख- " हिंसा , , असंयम ३६६ सोलह दण्डकों में चार किया । ३७० क- विद्यमान गुणों का नाश होने के चार कारण ख- गुणों की वृद्धि के चार कारण ३७१ क- चौवीस दंडकों में चार कारणों से शरीर की उत्पत्ति , रचना ३७२ धर्म के चार साधन ख- , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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