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________________ स्थानांग-सूची १५६ श्रु०१, अ०४, उ०४ सूत्र ३६० ग- विवेकी और अविवेकी चार प्रकार के पुरुष ध- शास्त्रज्ञ और समयज्ञ, चार प्रकार के पुरुष ङ- स्वदया , परदया , ३५३ चार प्रकार के मैथुन विषयक ७ सूत्र ३५४ क- चारित्र नष्ट होने के चार कारण ख- असूर योग्य कर्म बंधन के चार कारण ग- आभियोगिक-देवयोग्य , घ- संमोह (मूढ देव) योग्य , ङ- किल्विष देव " " ३५५ क-से-ङ तक चार प्रकार की प्रव्रज्या, वपन और शुद्धि च-छ- चार प्रकार की कृषि, इसी प्रकार चार प्रकार की प्रव्रज्या चार संज्ञा आहार संज्ञा के चार कारण भय मैथुन परिग्रह " " ३५७ चार प्रकार के काम तुच्छ और गंभीर क-ख- चार प्रकार का जल, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष ग-ध- ,, ,, के समुद्र ३५६ समर्थ और असमर्थ चार प्रकार के तिरने वाले क-से-छ-तक लौकिक पक्ष-धन से परिपूर्ण और धन रहित लोकोत्तर पक्ष-श्रुत से परिपूर्ण और श्रूत रहित चार प्रकार के कुम्भ, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष ज- मधुर भाषण, कटु भाषण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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