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________________ स्थानांग-सूची १५८ श्रु०१, अ०४, उ०४ सूत्र ३५२ प्रत्येक के चार-चार विकल्प ३४७ ' चार प्रकार के मेघ ३४८ क- सार और असार चार प्रकार के करंड, इसी प्रकार चार प्रकार के आचार्य ख- महानता और तुच्छता चार प्रकार के वृक्ष, इसी प्रकार चार प्रकार के आचार्य ग- योग्य अयोग्य आचार्य और योग्य अयोग्य शिष्य चार प्रकार के वृक्ष, इसी प्रकार चार प्रकार के आचार्य घ- भिक्षाचर्या चार प्रकार के मच्छ, इसी प्रकार चार प्रकार के भिक्षाचर ङ- श्रमण की वैचारिक दृढता और शिथिलता चार प्रकार के गोले, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष च- अल्प गुण और अधिक गुरग चार प्रकार के गोले, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष छ- स्नेह छेदन चार प्रकार के पत्र ज- अल्प या अधिक स्नेह चार प्रकार की चटाई ३५० क- चार प्रकार के चतुष्पद ख. , , , क्षुद्रप्राणी ३५१ समर्थ और असमर्थ चार प्रकार के पक्षी, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष ३५२ क- लौकिक पक्ष-कृशदेह और पुष्टदेह लोकोत्तर पक्ष-कृश कषाय और अकृश कषाय ख- दुर्बल और सबल देह, दुर्बल और सबल आत्मा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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