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________________ स्थानांग-सूची १५७ श्रु०१, अ०४, उ०४ सूत्र ३४६. गुरु के समक्ष अतिचारों की आलोचना करने वाला च- लौकिक पक्ष-अंदर का व्रण, बाहर का व्रण लौकिक पक्ष-दुष्ट हृदय, सहृदय चार प्रकार के व्रण, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष छ- धर्मात्मा और पापात्मा __ धर्मात्मा सदृश और पापात्मा सदृश ज- अपने आपको धर्मात्मा या पापात्मा मानना झ- कथा वाचक प्रभावक ,, , एषणा निपुण इसी प्रकार प्रत्येक के चार-चार प्रकार के पुरुष अ- चार प्रकार की वृक्ष विक्रिया ३४५ चार प्रकार के वादी सोलह दण्डकों में चार प्रकार के वादी ३४६ देना या न देना। क-ख- चार प्रकार के मेघ ग. गुप्त दान चार प्रकार के मेघ .. घ- यथोचित दाता. अदाता चार प्रकार के मेघ ङ- पात्र को देने वाला चार प्रकार के मेघ च- लौकिक जन्म-पालन-पोषण चार प्रकार के मेघ, इसी प्रकार चार प्रकार के माता-पिता लोकोत्तर जन्म-दीक्षा. ज्ञान दान चार प्रकार के मेघ, इसी प्रकार चार प्रकार के आचार्य छ- आत्म हित और सर्व हित, (स्वदेश और विश्व) चार प्रकार के मेघ, इसी प्रकार चार प्रकार के राजा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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