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________________ पद २३ सूत्र ७ प्रज्ञापना-सूची ख- आरंभिका आदि पांच क्रियाओं के कर्ता १२ क- चौवीस दण्डक में आरंभिकादि क्रियाएँ ख- चौवीस दण्डक में आरंभियादि पाँच क्रियाओं का परस्पर संबंध ग- चौवीस दण्डक में एक समय में आरंभियादि पाँच क्रियाओं की संभावित संख्या घ- चौवीस दण्डक में आरंभियादि पांच क्रियाओं में से एक क्रिया के समय अन्य क्रियाओं की नियमित संभावना, संवर प्राणातिपात विरति-यावत्-मिथ्यादर्शनशल्य की विरति के के विषयों का कथन प्राणातिपात विरत यावत्-मिथ्यादर्शनशल्य विरत के कितनी कितनी कर्म प्रकृतियों का बंधन प्राणातिपातविरत-यावत् मिथ्यादर्शनशल्य विरत के आरंभि.. यादि पांच क्रियायें आरंभियादि पांच क्रियाओं का अल्प-बहुत्व त्रयोविंशतितम कर्म प्रकृति पद प्रथम उद्देशक १ क- अष्ट कर्म प्रकृतियों के नाम __ख- चौवीस दण्डक में अष्ट कर्म प्रकृतियाँ २ क- चौवीस दण्डक में अष्ट कर्म प्रकृतियों के बंधन हेतुओं का क्रम ३ क- अष्ट कर्म बंध के चार कारण ____ ख- चौवीस दण्डक में अप्ट कर्म बन्ध के चार कारण ४ चौवीस दडण्क में अष्ट कर्म प्रकृतियों का वेदन ५ ज्ञानावरणीय के दस अनुभाव ६ दर्शनावरणीय के नव अनुभाव ७ क- शातावेदनीय के आठ अनुभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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