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________________ स्थानांग - सूची ज- श्रेष्ठ और अश्रेष्ठ १ जाति- कुल २ जाति-बल ३ जाति-रूप ४ श्रुत ५ शील ६ चरित्र " " 13 १ कुल-बल २ कुल - रूप ४ शील ५ चरित्र १५२ श्रु० १, अ०४ उ०३ सू०३२० "} }) ३ कुल-श्रुत १ बल-रूप २ बल - श्रुत ३ बल-शील ४ बल-रूप १ रूप श्रुत २ रूप- शील ३ रूप-चरित्र १ श्रुत-शील २ श्रुत चरित्र १ शील- चरित्र कुल संख्या २१, चार प्रकार के पुरुष झ- मधुरता चार प्रकार की मधुरता, इसी प्रकार चार प्रकार के आचार्य ञ - आत्म सेवा, पर सेवा, चार प्रकार के पुरुष ट- सेवा करने वाला और सेवा नहीं कराने वाला, चार प्रकार Jain Education International के पुरुष ठ- कार्य करने वाला, अभिमान नहीं करने वाला, चार प्रकार के पुरुष ड- गण गण का कार्य ढ- गण के योग्य सामग्री का संचय करने वाला, किन्तु अभिमान नहीं करने वाला, चार प्रकार के पुरुष - गण की शोभा बढ़ावे वाला, किन्तु अभिमान नहीं करने वाला चार प्रकार के पुरुष त- गण की शुद्धि करने वाला किन्तु अभिमान नहीं करने वाला, चार प्रकार के पुरुष थ - लिंग और धर्म का त्याग - चौभंगी द- धर्म और गण का त्याग ध- धर्म प्रेम और धर्म में दृढ़ता, चार प्रकार के पुरुष " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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