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श्रु०१, अ०४, उ०३ सूत्र ३२७ १५३
न- चार प्रकार के आचार्य
प
अंतेवासी
फ
निर्ग्रथ
ब
निग्रंथियां
भ
म
श्रमणोपासक श्रमणोपासकाएं श्रमणोपासक
३२१ क- ख
३२२
३२३ -
37
३२६
19
33
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33
सौधर्म कल्प में उत्पन्न होने वाले भ० महावीर के श्रावकों
की स्थिति
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सद्यजातदेव के मनुष्य लोक में न आने के चार कारण आने के चार कारण
32
33
17
३२४ क - लोक में अंधकार होने के चार कारण
उद्योत
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ख
ग- देवलोक में अंधकार
घ" "
उद्योत
ङ - देवसमूह के मनुष्य लोक में आने के चार कारण च- मनुष्य लोक में
देव मेला होने के
देव - कोलाहल
छ- "
ज
देवेन्द्रों के आगमन के
ख- दुःख
33
३२५ क - वसति-निवास गृह
चार सुख शय्या
او
17
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11
17
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21
39
स्वाध्याय
वाचन देने के अयोग्य पुरुष
योग्य
३२७ क- भरण-पोषण, चार प्रकार के पुरुष
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स्थानांग सूची
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