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प्रज्ञापना-सूची
पद १५ सूत्र १८ चौविस दण्डक में तीन काल की अपेक्षा से अपकर्म प्रकृतियों का उपचय, बंध, वेदना और निर्जरा का चिन्तन पंचदसम इन्द्रिय पद प्रथम उद्देशक पचीस द्वारों के नाम पाँच इन्द्रियों के नाम पाँच इन्द्रियों के संस्थान
, का बाहल्य ,, का विस्तार
के प्रदेश
के प्रदेशावगाढ का परिमाण ,, की अवगाहना और प्रदेशों की अपेक्षा से
अल्प-बहुत्व ,, के कर्कश और गुरु गुण का परिमाण
,, के कर्कश और गुरु गुण का अल्प-बहुत्व चौवीस दण्डक में पांच इन्द्रियों के आठ द्वारों का कथन पाच इन्द्रियों में प्राप्य कारी और अप्राप्यकारी का कथन पांच इन्द्रियों का विषय क्षेत्र
निर्जरा पुद्गल . १५ क- मारणान्तिक समुद्घात वाले अनगार के निर्जरा पुद्गलों की
सूक्ष्मता और व्यापकता ख- छद्मस्थ को निर्जरा पुद्गलों की भिन्नता आदि का अज्ञान,
अज्ञान का हेतु १६-१८ चौवीस दण्डक के जीवों द्वारा निर्जरा पुद्गलों का जानना,
देखना और आहार करना
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