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________________ पद ३ सूत्र ३ ६४० प्रज्ञापना-सूची छ- सौधर्मेन्द्र और ईशानेन्द्र की अग्रमहीषियों की संख्या ज- गाथा १-२ में प्रत्येक कल्प के विमानों की संख्या का उल्लेख झ- गाथा १ में प्रत्येक इन्द्र के सामानिक देव और आत्मरक्षक देवों की संख्या का उल्लेख ५४-५५ पर्याप्त अपर्याप्त नववेयक देवों के स्थान ५७ " पांच अनुत्तर देवों के स्थान. सिहों का वर्णन ५८ क- सिद्धों का स्थान ख- ईषत् प्राग्भारा पृथ्वी का आयाम-विष्कम्भ, परिधि ग- मध्य भाग और अन्तिम भाग का बाहल्य घ- ईषत् प्राग्भारा पृथ्वी के बारह नाम का वर्ण, संस्थान च गाथा १, २, ३, में सिद्धों की अवस्थितिका वर्णन गाथा ४ में सिद्धों की अवगाहना गाथा ५ में सिद्धों के आत्म-प्रदेशों का संस्थान गाथा ६-६ में सिद्धों की अवगाहना और संस्थान गाथा १०-१२ में एक में अनेक सिद्ध गाथा १२-१३ में अनन्त ज्ञान दर्शन का वर्णन गाथा १४-१६ सिद्धों के सुख का वर्णन गाथा १७-२२ में सिद्ध सुखों की सोदाहरण तुलना तृतीय अल्प-बहुतत्व पद गाथा १, २ में सत्तावीस द्वारों के नाम १ दिशा द्वार चार दिशाओं में सर्वजीवों का अल्प-बहत्व पांच स्थावर जीवों का " तीन विकलेन्द्रियों का " marr Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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