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________________ पद ३ सूत्र ४-२६ प्रज्ञापना-सूची ४ १० ११ १२ चार दिशाओं में नैरयिकों का अल्प-बहुत्व पंचेन्द्रिय तिर्यचों का " मनुष्यों का चार प्रकार के देवों का " सिद्धों का २ गति द्वार नरक-यावत्-सिद्ध इन पांच गतियों की अल्प-बहुत्व नै रयिक-यावत्-सिद्ध इन आठ गतियों का अल्प-बहुत्व ३ इन्द्रिय द्वार सइन्द्रिय-यावत्-अनिन्द्रयों का अल्प-बहुत्व " " के अपर्याप्तों का अल्प-बहुत्व के पर्याप्तों का के प्रत्येक के पर्याप्तों का अल्प-बहुत्व के पर्याप्तों का संयुक्त अल्प-बहुत्व ४ काय द्वार सकाय-यावत्-अकाय जीवों का अल्प बहुत्व के पर्याप्तों का अल्प-बहुत्व ,, , के अपर्याप्तों का के प्रत्येक के पर्याप्तों अपर्याप्तों का , .. के पर्याप्तों अपर्याप्तों का संयुक्त , सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों-यावत्-सूक्ष्म निगोदों का अल्प-बहुत्व इनके अपर्याप्तों का अल्प-बहुत्व इनके पर्याप्तों का अल्प-बहुत्व इनके प्रत्येक के पर्याप्तों-आर्याप्तों का अल्प-बहुत्व इनके पर्याप्तों का संयुक्त-अल्प-बहुत्व बादर पृथ्वीकायिकों-यावत्-बादर त्रसकायिकों का अल्प-बहुत्व २४ २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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