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________________ भगवती-सूची ३७४ श०१७ उ०६ प्र०५७ ३६-४३ तीन प्रकार की चलना, चलना के हेतु . पचपन बोल ४४ संवेग-यावत्-मारणांतिक अहियासणिया का अंतिम फल मोक्ष चतुर्थ क्रिया उद्देशक क- राजगृह ख- प्राणातिपात क्रिया ४६ क- स्पृष्ट क्रिया चौबीस दण्डक में स्पृष्ट किया ख- व्याघात और अव्याघातसे क्रिया का दिशा विचार ४७.४८ मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह सम्बन्धी क्रिया चौवीस दण्डक में उक्त क्रियायें क्षेत्र से स्पृष्ट क्रिया-प्राणातिपात-यावत्-परिग्रह से प्रदेश सृष्ट क्रिया प्राणातिपात-यावत्-परिग्रह से दुःख ५२ क- आत्मकृत दुःख ख- चौवीस दण्डक में आत्मकृत दुःख ५३ क- आत्मकृत दुःख का वेदन । ख- चौवीस दण्डक में आत्मकृत दुःख का वेदन ५४ क- प्रात्मकृत वेदना ५५ क- आत्मकृत वेदना का वेदन ख- चौवीस दण्डक में आत्मकृत वेदना का वेदन पंचम सुधर्मा सभा उद्देशक ५६ क- ईशानेन्द्र की सुधर्मा सभा-यावत् ख- ईशानेन्द्र की स्थिति षष्ठ पृथवी कायिक उद्देशक ५७ क- पृथ्वीकायिक जीव का उत्पन्न होने से पूर्व या पश्चात् आहार ग्रहण करना ख- रत्नप्रभा पृथ्वी का जीव, सौधर्म कल्प की पृथ्वी में उत्पन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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