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भगवती-सूची
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श०१७ उ०६ प्र०५७
३६-४३ तीन प्रकार की चलना, चलना के हेतु .
पचपन बोल ४४ संवेग-यावत्-मारणांतिक अहियासणिया का अंतिम फल मोक्ष
चतुर्थ क्रिया उद्देशक क- राजगृह
ख- प्राणातिपात क्रिया ४६ क- स्पृष्ट क्रिया चौबीस दण्डक में स्पृष्ट किया
ख- व्याघात और अव्याघातसे क्रिया का दिशा विचार ४७.४८ मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह सम्बन्धी क्रिया
चौवीस दण्डक में उक्त क्रियायें क्षेत्र से स्पृष्ट क्रिया-प्राणातिपात-यावत्-परिग्रह से प्रदेश सृष्ट क्रिया प्राणातिपात-यावत्-परिग्रह से
दुःख ५२ क- आत्मकृत दुःख
ख- चौवीस दण्डक में आत्मकृत दुःख ५३ क- आत्मकृत दुःख का वेदन ।
ख- चौवीस दण्डक में आत्मकृत दुःख का वेदन ५४ क- प्रात्मकृत वेदना ५५ क- आत्मकृत वेदना का वेदन ख- चौवीस दण्डक में आत्मकृत वेदना का वेदन
पंचम सुधर्मा सभा उद्देशक ५६ क- ईशानेन्द्र की सुधर्मा सभा-यावत् ख- ईशानेन्द्र की स्थिति
षष्ठ पृथवी कायिक उद्देशक ५७ क- पृथ्वीकायिक जीव का उत्पन्न होने से पूर्व या पश्चात् आहार
ग्रहण करना ख- रत्नप्रभा पृथ्वी का जीव, सौधर्म कल्प की पृथ्वी में उत्पन्न
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