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________________ श०१७ उ०२-३ प्र०३५ ३७३ भगवती-सूची घ. एक वचन और बहु वचन की अपेक्षा से छब्बीस विकल्प १६ छह प्रकार के भाव १७ दो प्रकार के औदयिक भाव द्वितीय संयत उद्देशक १८ क- संयत-विरत धार्मिक, असंयत-अविरत अधार्मिक और संयता संयत-धर्माधार्मिक ख- धर्म में स्थित होने का हेतु १६ जीव धर्म, अधर्म और धर्माधर्म में स्थित हैं अन्य तीर्थिक २०-२१ चौवीस दण्डक के जीव धर्म, अधर्म और धर्माधर्म में स्थित हैं २२ अन्य तीथिकों की मान्यता-एक जीव के बध की अविरति जिसके है वह बालपंडित है जीव बाल, पंडित और बालपंडित है २४-२५ चौवीस दण्डक के जीव बाल, पंडित' और बाल पंडित हैं अन्य तीर्थिक अन्य तीथिकों की मान्यता-जीव और जीवात्मा कथंवित् भिन्न हैं भ० महावीर की मान्यता—जीव और जीवात्मा भिन्न हैं वैक्रेय शक्ति २७ क- देवरूपी रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ है, ख- अरूपी रूप की विकुर्वणा नहीं कर सकता २८ अरूपी रूप की विकुर्वणा न कर सकने का हेतु तृतीय शैलेषी उद्देशक २६ शैलेषी अनगार का पर प्रयोग के बिना कंपन नहीं ३० पांच प्रकार की एजना-कम्पन ३१-३५ एजना और एजना के हेतु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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