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________________ श०१७ उ०१२ प्र०६५ ३७५ भगवती-सूची जीव-रत्न प्रभा पृथ्वी से ईशानकल्प की पृथ्वी में उत्पन्न जीव-यावत्-ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी में उत्पन्न जीव ग- आहार ग्रहण का हेतु सप्तम पृथ्वी कायिक उद्देशक ५८ सौधर्म कल्प की पृथ्वी से रत्नप्रभा की पृथ्वी में उत्पन्न जीव यावत्-तम प्रभाः पृथ्वी में उत्पन्न जीव अष्टम अप्कायिक उद्देशक ५६ क- अप्कायिक जीवों का उत्पन्न होने के पूर्व या पश्चात् आहार ग्रहण करना ख- आहार ग्रहण का हेतु ग- रत्नप्रभा पृथ्वी में से अप्कायिक जीवका सौधर्मकल्प में अप्का यिक रूप में उत्पन्न होना नवम अप्कायिक उद्देशक सोधर्म कल्प से अप्कायिक जीव का रत्नप्रभा में अप्कायिक रूप में उत्पन्न होना-यावत्-तमस्तमप्रभा में उत्पन्न होना दशम वायुकायिक उद्देशक रत्नप्रभा से वायुकायिक जीवका सौधर्म कल्प में वायुकायिक रूप में उत्पन्न होना एकादश वायुकायिक उद्देशक सौधर्म कल्प से वायुकायिक जीव का रत्नप्रभा में-यावत्तमस्तमप्रभा में वायुकायिक जीव का उत्पन्न होना द्वादश एकेन्द्रिय उद्देशक सर्व एकेन्द्रियों का आहार, उच्छवास-यावत्-आयु उत्पत्ति सम्बन्धी वर्णन ६४ एकेन्द्रियों की लेश्या ६५ . . लेश्यावाले एकेन्द्रियों का अल्प-बहुत्व ६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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