SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१० भगवती-सूची ३७६ श०१८ उ०१ प्र० ३५ लेश्यावाल एकेन्द्रियों की ऋद्धि का अल्प-बहुत्व त्रयोदश नागकुमार उद्देशक नागकुमारों का आहार-यावत्-ऋद्धि का अल्प-बहुत्व चतुर्दश सुवर्णकुमार उद्देशक सुवर्णकुमारों का आहार-यावत्-ऋद्धि का अल्प-बहुत्व पंचदश-विद्युत्कुमार उद्देशक ६६ विद्युत्कुमारों का आहार-यावत्-ऋद्धि०अल्प-बहुत्व षोडस वायुकुमार उद्देशक वायुकुमारों का आहार-यावत्-ऋद्धि ०अल्प-बहुत्व सप्तदश अग्निकुमार उद्देशक अग्निकुमारों का आहार-यावत्-ऋद्धि ० अल्प-बहुत्व अठाहरवा शतक प्रथम प्रथम उद्देशक १ क- जीव जीवभाव से अप्रथम है ख- चौवीस दण्डक के जीव जीवभाव से अप्रथम है २ सिद्ध, सिद्धभाव से प्रथम है ३ क- समस्त जीव जीवभाव से अप्रथम है ____ ख- चौवीस दण्डक के समस्त जीव, जीवभाव से अप्रथम है ४ समस्त सिद्ध सिद्धभाव से अप्रथम है ५-१६ १जीव,२ आहारक, ३ भवसिद्ध क, ४ संज्ञी, ५ लेश्या, ६ दृष्टि, ७ संयत, ८ कषाय, ६ ज्ञान, १० योग, ११ उपयोग, १२ वेद, १३ शरीर, १४ पर्याप्त उक्त द्वारों में एक वचन-बहु वचन की अपेक्षा चौवीस दण्डकों में प्रथमाप्रथम भाव की विचारणा २०-३५ १ जीव २ आहारक ३ भवसिद्धक. ४ संज्ञी ५ लेश्य ६ दृष्टि ७ संयत ८ कषाय ६ ज्ञान १० योग ११ उपयोग १२ वेद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy