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________________ श०१८ उ०२-३ प्र०१० ३७७ भगवती-सूची १३ शरीर १४ पर्याप्त उक्त द्वारों में एक वचन बहु वचन की अपेक्षा चौवीस दण्डकों में चरमाचरम की विचारणा सूत्रांक द्वितीय विशाखा उद्देशक १ विशाखा नगरी, बहुपुत्रिक चैत्य, भ० महावीर का पदार्पण, शकेन्द्र का आगमन नाट्य प्रदर्शन २ क- भ० गौतम को शकेन्द्र की ऋद्धि तथा पूर्वभव की जिज्ञासा ख- भ० महावीर द्वारा समाधान ३ क- हस्तिनागपुर, सहस्राम्रवन, कार्तिक सेठ, एक हजार आठ व्या पारियों में प्रमुख ख- भ० मुनि सुव्रत का पदार्पण ४ कार्तिक शेठ का धर्मश्रवण और वैराग्य ५-७ एक हजार आठ वणिकों के साथ कार्तिक शेठ का प्रव्रज्या ग्रहण चौदहपूर्व, का अध्ययन, तपश्चर्या, अन्तिम आराधना, शकेन्द्र रूप में उत्पन्न होना, पश्चात् महाविदेह में जन्म और निर्वाण तृतीय माकंदिपुत्र उद्देशक ८ क- राजगृह, गुणशील चैत्य, म० महावीर से माकंदीपुत्र अनगार के प्रश्न ख- कापोत लेश्या वाले पृथ्वीकायिक जीव का मनुष्यभव प्राप्त ___ करके मुक्त होना ६-१० क- कापोत लेश्यावाले अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीव का ___ मनुष्यभव प्राप्त करके मुक्त होना ख- भ० महावीर के प्राप्त समाधान के सम्बन्ध में माकंदीपुत्र की स्थविरों से वार्ता ग- भ० महावीर के समीप समाधान के लिये स्थविरों का आगमन घ- माकंदीपुत्र से स्थविरों का क्षमा याचन . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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