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भगवती-सूची
श०१८ उ०४ प्र०३५ ११ भावित आत्मा अनगार के सर्वलोकव्यापी चरम निर्जरा पुद्गल
१२ उपयोगयुक्त छद्मस्थ का निर्जरा पुद्गलों को जानना १३-१५ क- पुद्गलों का श्राहार करना
ख. चौवीस दण्डक के जीवों को निर्जरा पुद्गलों का ज्ञान तथा
निर्जरा पुद्गलों का आहार करना १६-२० दो प्रकार का बंध
२१ चौवीस दण्डक के जीवों को भावबंध २२-२३ चौवीस दण्डकों में ज्ञानावरणीय-यावत्-अन्तराय की मूल उत्तर
प्रकृतियों का बंध अतीत तथा भविष्य के कर्मों में भिन्नता
धनुष बाण का उदाहरण २५ चौवीस दण्डक के अतीत तथा भविष्य के कर्मों में भिन्नता
चौवीस दण्डक के जीवों द्वारा आहाररूप में गृहीत पुद्गलों
की आहररूप में परिणति तथा निर्जरा २७ अतिसूक्ष्म निर्जरित पुद्गल
चतुर्थ प्राणातिपात उद्देशक २८ क- राजगृह ख- अठारह पाप, पृथ्वीकाय-यावत्-ब नस्पतिकाय, धर्मास्तिकाय,
-यावत्-परमाणु पुद्गल, शैलेषी अवस्थाप्राप्त अनगार और स्थूल-शरीरधारी बेइन्द्रियादि इनमें से कुछ जीव के परिभोग
में आते हैं और कुछ परिभोग में नहीं आते हैं ग- ऐसा कहने का हेतु २६ चार प्रकार का कषाय ३० कृतयुग्मादि चार राशि ३१-३३ चौवीस दण्डक में कृतयुग्मादि चार राशि ३४ स्त्री दण्डकों में कृतयुग्मादि चार राशि ३५ अल्प और उत्कृष्ट आयुवाले अंधक वह्निजीव
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