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________________ ३७६ पंचम असुर कुमार उद्देशक ३६ क- एक असुरकुमारावास में दो प्रकार के एक दर्शनीय और एक दर्शनीय ख- दर्शनीय और अदर्शनीय होने का हेतु श०१८ उ०७ प्र० ५१ ३६ ४०-४१ - विभूषित और अविभूषित मनुष्य का उदारहण नागकुमार आदि भवनवासी देव व्यन्तरदेव ३७ ३८ क - एक नरकावास में दो प्रकार के नैरयिक, एक महाकर्मा और एक अल्पकर्मा ख- नैरयिकों के अल्पकर्मा और महाकर्मा होने का हेतु सोलह दण्डकों में अल्पकर्मा और महाकर्मा जीव चौवीस दण्डक में मृत्यु से कुछ समय पूर्व दो प्रकार की आयु. असुरकुमार का बंध ४२-४३ देवताओं की इष्ट और अनिष्ट विकुर्वणा ४४ ४५ ४६ षष्ठ गुड़ वर्णादि उद्देशक निश्चय और व्यवहार नय से गुड़ के वर्ण आदि निश्चय और व्यवहार से भ्रमर के वर्णादि निश्चय और व्यवहार नयसे सुकपिच्छ के वर्णादि ख- मंजिष्ठ, हल्दी, शंख, कुष्ठ, मृतकलेवर, निम्ब, सूठ, कपित्थ, इमली, खांड, वज्र, नवनीत, लोह, उलूकपत्र, हिम, अग्नि, तेल, आदि का निश्चय और व्यवहारनय से वर्ण, गंध, रस और स्पर्श ४७ निश्चय और व्यवहारनय से राख के वर्णादि ४८ परमाणु के वर्ण, गंध, रस, स्पर्श ४६-५० भगवती-सूची द्विप्रदेशिक स्कन्ध - यावत् - अनन्त प्रदेशिक स्कंध के वर्ण आदि सप्तम केवली उद्देशक ५१ क- राजगृह- भ० महावीर और गौतम गणधर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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