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________________ भगवती-सूची ६०-६३ आर्य अतिमुक्तक ५८ क- भ० महावीर का अंतेवासी अतिमुक्त कुमार श्रमण ख अतिमुक्त की नौका क्रीड़ा ग- अतिमुक्त की इसी भव में मुक्ति घ- अतिमुक्तक की निंदा न करने तथा सेवा करने के लिए भ० महावीर का आदेश देव आगमन ५६ क- भ० महावीर के समीप दो देवों का महाशुक कल्प से आगमन ख- भ० महावीर और देवों का मन से प्रश्नोत्तर करना ग- देवों के सम्बन्ध में गौतम की जिज्ञासा ६४ ७० २६६ ७१-७२ ७३-७६ घ- गौतम और देवों का वार्तालाप ङ - देवों का स्वस्थान गमन केवली और छद्मस्थ ६५ केवली को मुक्त आत्मा का ज्ञान ६६ क - छद्मस्थ को मुक्त आत्मा का अज्ञान ख- दो साधनों से छद्मस्थ को ज्ञान होता है जिनसे ज्ञान सुनकर छद्मस्थ ज्ञान प्राप्त करता है चार प्रकार के प्रमाण ७७ श०५ उ०४ प्र० ७७० ६७ ६८ ६६ क - केवली को अंतिम कर्म वर्गणा का ज्ञान ख- छद्मस्थ को अंतिम कर्म वर्गणा का अज्ञान देवों को नो संगत कहना उचित है देवताओं की भाषा अर्धमागधी भाषा है Jain Education International केवली का उत्कृष्ट मनोबल व वचनबल वैमानिक देवों का उत्कृष्ट मनोबल व वचनबल अनुत्तर देव और केवली का आलाप - संलाप अनुत्तर देव उपशांत मोही हैं। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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