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________________ श०५ उ०५-६ प्र०६४ ३०० भगवती-सूची '७८-७९ ८०-८१ ८४ ८५-८६ केवली का अतीन्द्रिय ज्ञान केवली का आकाश प्रदेशावगाहन सामर्थ्य चौदह पुर्वी ८२-८३ चौदह पूर्वधारी का लब्धिसामर्थ्य पंचम छद्म स्थ उद्देशक छद्मस्थ की संयम से सिद्धि अन्य तीर्थिकसभी प्राणी एवं भूत वेदना का वेदन करते हैं भ० महावीर--- सभी प्राणी एवं भूत और अनेवंभूत वेदना का वेदन करते हैं ८७-८८ चौवीस दंडक मे दोनों प्रकार की वेदना का वेदन संसार मंडल कुलकर आदि ८६ क- जम्बूद्वीप. भरतक्षेत्र ख- इस अवसर्पिणी में सात कुलकर हुए ग- तीर्थंकरों के माता-पिता घ- चक्रवर्ती की माता और स्त्री रत्न ङ- बलदेव-वासुदेव, वासुदेव के माता-पिता च- प्रतिवासुदेव, सभी समवायांग के समान षष्ठ अायु उद्देशक अल्पायु के तीन कारण दीर्घायु के तीन कारण अशुभ दीर्घायु के तीन कारण ६३ शुभ दीर्घायु के तीन कारण क्रिया विचार ६४ क- चोरी में गये हुए माल की शोध करने में लगनेवाली क्रियाएँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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