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श०५ उ०६ प्र०१०३
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भगवती-सूची
ख- चोरी में गया माल मिलने पर लगनेवाली क्रियाएँ विक्रेता और क्रेता को लगने वाली, क्रियाएँ विक्रेता के बीजक देने पर किन्तु क्रेता के माल न जाने तक लगनेवाली क्रियाएँ क्रेता के घर माल पहुँचने पर क्रेता को और विक्रेता को लगनेवाली क्रियाएँ क्रेता के मूल्य देने या न देने पर लगनेवाली क्रियाएँ अग्निकाय-कर्मबंधन अग्नि प्रज्वलित करनेवाले के अधिक कर्म बंध अग्नि शांत करनेवाले के अल्प कर्म बंध
क्रिया विचार ९-१०० शिकारी, धनुष, प्रत्यंचा आदि को लगनेवाली क्रियाएँ
अन्य तीथिकचार सौ पांच सौ योजन का मनुष्य लोक है भ. महावीर
चार सौ पांच सौ योजन का निरयलोक है १०२ नैरयिकों का वैक्रिय
आधाकर्म श्राहार १०३ क- आधाकर्म आहार का सेवी आलोचना करे ती आराधक
___आधाकर्म आहार का सेवी आलोचना न करे तो अनाराधक ख- क्रीत ग- स्थापित घ. रचित ङ- कांतार भक्त च- भिक्ष भक्त छ- वादलिका भक्त ज- ग्लान भक्त
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