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________________ श०५ उ०७ प्र०११८ १०४ १०५ १०६ १०७ भ- शय्यातर भक्त ञ - राजपिंड भक्त ११२-११३ ११४ ११८ ३०२ आधाकर्म आहार को अनवद्य सब के दो-दो विकल्प 17 27 सब के दो-दो विकल्प आधाकर्म आहार को निष्पाप कहकर आदान प्रदान करने "" आचार्य उपाध्याय कर्तव्य निष्ठ आचार्य एवं उपाध्याय की तीन भव से मुक्ति मृषावादी मृषावाद से कर्म बंधन सप्तम पुद्गल कंपन उद्देशक १०८ परमाणु - पुद्गल का कंपन १०-१११ क- दो, तीन और चतुः प्रदेशी स्कंध का कंपन ख- पंच प्र देशी - यावत् - अनंत प्रदेशी स्कंध का कंपन Jain Education International भगवती-सूची "3 " ११५ ११६-११७ दो प्रदेशी स्कंध सार्ध, समध्य और सप्रदेशी हैं 33 वाला अनाराधक For Private & Personal Use Only परमाणु पुद्गल यावत् - असंख्य प्रदेशी स्कंध का असिधारा से छेदन नहीं "" अनंत प्रदेशी स्कंध का असिधारा से छेदन अनंत प्रदेशी स्कंध का अग्नि से ज्वलन अनंत प्रदेशी स्कंध का पानी से आर्द्र होना अनंत प्रदेशी स्कंध का पुष्करावर्त मेघ से गीला होना परमाणु पुद्गल अनर्ध, अमध्य और अप्रदेशी हैं तीन प्रदेशी स्कंध अनर्ध, समध्य और सप्रदेशी हैं संख्यात, असंख्यात और अनंत प्रदेशी स्कंध, सार्ध, समध्य और सप्रदेशी हैं www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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