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________________ सूत्र १७३-१७५ जीवाभिगम-सूची १७३ लवण समुद्र के पानी को जम्बूद्वीप में फैलने से रोकने वाले निमित्त कारण-हेतु धातकीखण्ड का वर्णन १७४ क- धातकीखण्ड का संस्थान " का चक्रवाल-विष्कम्भ ग- " का चक्रवाल-परिधि घ- " की पद्मवर वेदिका और वनखण्ड ङ- धातकीखण्ड के चार द्वार च- प्रत्येक द्वार का अन्तर छ- धातकीखण्ड और कालोद समुद्र का परस्पर स्पर्श ज- धातकीखण्ड और कालोद समुद्र के जीवों की धातकीखण्ड और कालोद समुद्र में उत्पत्ति. झ- धातकीखण्ड नाम होने का हेतु अ- धातकी महाधात की वृक्ष. इन पर रहने वाले देव. देवों की स्थिति ट- धातकीखण्ड की नित्यता ठ- धातकीखण्ड के चन्द्र महाग्रह नक्षत्र तारा कालोद समद्र का वर्णन १७५ क- कालोद समुद्र का संस्थान का चक्रवाल-विष्कम्भ का चक्रवाल-परिधि की पवार वेदिका, वन खण्ड. के चार द्वार के प्रत्येक द्वार का अन्तर घ- " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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