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________________ ६०२ . जीवाभिगम-सूची सूत्र १६६-१७२ १६६ द्वीप समुद्रों के नाम १६७ क- देव द्वीप के चन्द्र सूर्य और उनके चन्द्रसूर्य द्वीप, चन्द्रसूर्य द्वीप के स्थान आदि ख- सूर्यद्वीप के स्थान आदि, देव समुद्र के चन्द्र सूर्य और उनके चन्द्र सूर्य द्वीप ग- चन्द्र द्वीप के स्थान आदि घ- सूर्य द्वीप के स्थान आदि ङ- नाग, यक्ष, भूत द्वीप और समुद्र-चन्द्र-सूर्य द्वीप च- स्वयंभूरमण द्वीप में चन्द्र-सूर्य द्वीप छ- स्वयंभूरमण समुद्र में चन्द्र-सूर्य द्वीप १६८ क- लवणसमूद्र के वेलंधर मच्छ, कच्छप ख- बाह्य समूद्रों में वेलंधरों का अभाव १६६ क- लवणसमुद्र में उच्छितोदक है ख. बाह्य समुद्रों में प्रस्तटोदक है । ग- लवण समुद्र में मेघ आदि का सदभाव घ- बाह्य समुद्रों में मेघ आदि का अभाव ङ- मेघ आदि के अभाव का हेतु १७० क- लवण समुद्र के उद्वेध का परिमाण ख- , उत्सेध का परिमाण १७१ क- लवण समुद्र के गोतीर्थ का परिमाण ख- गोतीर्थ विरहित क्षेत्र का परिमाण ग- लवण समुद्र के उदकमाल का परिमाण १७२ क- लवण समुद्र के संस्थान का चक्रवाल-विष्कम्भ की परिधि का उदवेध का उत्सेध का सर्वाग्र भाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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